22-01-76   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

वर्तमान लास्ट समय का फास्ट पुरूषार्थ

विश्व कल्याणकारी, विश्व-सेवाधारी और आत्माओं को पद्मापद्म सौभाग्यशाली बनाने वाले भाग्य-विधाता परमात्मा शिव बोले:-

आज विशेष अति स्नेही, सिकीलधे, मिलन मनाने के चेतन चात्रक बच्चों के प्रति बाप-दादा मुखड़ा देखने के लिए आये हैं। ऐसे सदा मिलन के संकल्प में, सदा इसी लगन में लगे हुए बच्चे जितना बाप को याद करते हैं उतना बाप-दादा भी रिटर्न में करते हैं। ऐसे पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मायें बाप को भी प्रिय हैं और विश्व की भी प्रिय हैं। जैसे बच्चे बाप का आह्वान करते हैं, वैसे विश्व की आत्मायें आप सब सर्वश्रेष्ठ आत्माओं का आह्वान कर रही हैं। ऐसे आह्वान के आलाप कानों में सुनाई देते हैं? विशेष इस नुमाः शाम के समय जब सूर्य अस्त होता है, ऐसे समय पर बाप के साथसाथ ज्ञान-सूर्य के साथ लक्की सितारों को, अन्धकार को मिटाने वाले, ज्योति-स्वरूप समझकर इस हद की लाइट को नमस्कार करते हैं। यह किस की यादगार है? अनुभव होता है कि रोज़ आप श्रेष्ठ आत्माओं को नमस्कार हो रहा है? क्योंकि बाप भी ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं व विश्व एवं ब्रह्माण्ड की मालिक आत्माओं को रोज नमस्कार करते हैं। तो विश्व की आत्माओं ने भी रोज़ नमस्कार करने का नियम बना लिया है। ऐसे नमस्कार- योग्य स्वयं को अनुभव करते हो? ऐसे तो नहीं समझते हो कि यह गायन व पूजन तो पुरानों व अनन्य वत्सों का है? 

नये-नये, तीव्र पुरूषार्थ से चलने वाले, बाप-दादा के नयनों में विशेष समाये हुए हैं। जैसे बच्चों के नयनों में सदा बाप समाया हुआ है, सदा साथ का और समीप का अनुभव करते हैं। ऐसे देरी से आते हुए भी दूर नहीं, समीप हैं। इसलिए लास्ट में आने वाले बच्चों को ड्रामा अनुसार हाई जम्प द्वारा फास्ट (Fast) अर्थात् फर्स्ट (First) जाने का गोल्डन चॉन्स विशेष मिला हुआ है। ऐसे गोल्डन चान्स को सदा स्मृति में रखते हुए फुल अटेन्शन रखो। बाप-दादा भी नये बच्चों के उमंग, उत्साह और हिम्मत को देख हर्षित भी होते हैं और साथ-साथ सहयोग और विशेष स्नेह भी दे रहे हैं। 

अब इस वर्ष विश्व की आत्माओं की अनेक प्रकार की इच्छाएं अर्थात् कामनायें पूर्ण करने का दृढ़ संकल्प धारण करो। औरों की इच्छायें पूर्ण करना अर्थात् स्वयं को ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ बनाना। जैसे देना अर्थात् लेना है, ऐसे ही दूसरों की इच्छायें पूर्ण करना अर्थात् स्वयं को सम्पन्न बनाना है। वर्तमान लास्ट समय का फास्ट पुरूषार्थ यह है - एक ही समय में डबल कार्य करना है; वह कौनसा? अन्य के प्रति देना, अर्थात् स्वयं में भी वह कमी भरना, अर्थात् अन्य को बनाना ही बनना है। जैसे भक्ति-मार्ग में जिस वस्तु की कमी होती है उसी वस्तु का दान करते हैं; तो दान देने से उस वस्तु की कभी कमी नहीं रहेगी। तो देना अर्थात् लेना हो जाता है। ऐसे ही जिस सब्जेक्ट में, जिस विशेषता में, जिस गुण की स्वयं में कमी महसूस करते हो उसी विशेषता व गुण का दान करो अर्थात् अन्य आत्माओं के प्रति सेवा में लगाओ; तो सेवा का रिटर्न प्रत्यक्ष फल वा मेवे के रूप में स्वयं में अनुभव करेंगे। सेवा अर्थात् मेवा मिलना। अब इतना समय पुरूषार्थ का नहीं रहा है जो पहले स्वयं के प्रति समय दो, फिर अन्य की सेवा के प्रति समय दो। फास्ट पुरूषार्थ अर्थात् स्वयं और अन्य आत्माओं की साथ-साथ सेवा हो। हर सेकेण्ड, हर संकल्प में स्वयं के कल्याण की और विश्व के कल्याण की साथ-साथ भावना हो। एक ही सेकेण्ड में डबल कार्य हो, तब ही डबल ताज-धारी बनेंगे। अगर एक समय में एक ही कार्य करेंगे तो स्वयं का व विश्व का; एक समय भी एक कार्य करने की प्रालब्ध नई दुनिया में एक लाइट का क्राउन अर्थात् पवित्र जीवन, सुख-सम्पत्ति वाला जीवन प्राप्त होगा। लेकिन राज्य का तख्त और ताज प्राप्त नहीं होगा अर्थात् प्रजा पद की प्रालब्ध होगी। तो डबल क्राउन प्राप्त करने का आधार हर समय डबल सेवा -- स्वयं की और अन्य आत्माओं की करो। यह है लास्ट सो फास्ट पुरूषार्थ। ऐसा फास्ट पुरूषार्थ करते हो? ऐसी चेकिंग विशेष रूप से वर्तमान समय करो। इस साधन द्वारा ही स्वयं का और समय का परिवर्तन करेंगे। अच्छा! 

ऐसे सदा उम्मीदवार, स्वयं और विश्व के परिवर्तक, बाप-दादा के समान सदा विश्वकल्याण की शुभ भावना में रहने वाले, सर्व आत्माओं की सर्व कामनाएं सम्पन्न करने वाले तीव्र पुरुषार्थी, समय और संकल्प को सेवा में लगाने वाले विश्व-सेवाधारी, विश्वकल्याणकारी, सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते। 

इस मुरली का सार

1. सदा मिलन के संकल्प में, सदा इसी लगन में लगे हुए बच्चे जितना बाप को याद करते हैं उतना बाप-दादा भी रिटर्न में करते हैं। ऐसे पद्मापद्म भाग्यशाली आत्माएँ बाप को भी प्रिय हैं और विश्व को भी प्रिय हैं। 

2. फास्ट पुरूषार्थ अर्थात् एक ही समय में डबल कार्य सिद्ध करना अर्थात् स्वयं और अन्य आत्माओं की सेवा हो, हर सेकेण्ड, हर संकल्प में स्वयं के कल्याण की और विश्व के कल्याण की साथ-साथ भावना हो।